नई दिल्ली,। घर में मिली नकदी मामले में जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yaswant Verma) की कुर्सी छीनने की प्रक्रिया आगे बढ़ सकती है। उनके खिलाफ सरकार महाभियोग प्रस्ताव को मंजूरी दे चुकी है और 21 जुलाई से शुरू होने वाले मॉनसून सत्र (Monsoon Season) में इसे पेश किया जाएगा। फिलहाल सरकार इस बात को लेकर मंथन कर रही है कि इसे राज्यसभा में पहले पेश किया जाए या पहले लोकसभा से पारित कराया जाए। विपक्षी सांसद भी जस्टिस यशवंत वर्मा के महाभियोग प्रस्ताव पर समर्थन करने को तैयार हैं।
राज्यसभा के 50 सांसदों का समर्थन हो
बस कांग्रेस की मांग है कि जस्टिस शेखर यादव पर भी महाभियोग लाया जाए, जिन्होंने विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में सांप्रदायिकता फैलाने वाला बयान दिया था। बता दें महाभियोग प्रस्ताव पर लोकसभा के कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर होना जरुरी है। इसके अलावा राज्यसभा के 50 सांसदों का समर्थन हो। यह शर्त सदन में प्रस्ताव लाने के लिए है। इसके अलावा मंजूरी के लिए दो तिहाई बहुमत वाला नियम है। यदि दोनों सदनों से प्रस्ताव बहुमत के साथ पारित होता है तो फिर उसे राष्ट्रपति को भेजा जाता है और उनके हस्ताक्षर के बाद ही संबंधित जज को हटाया जा सकता है।
महाभियोग प्रस्ताव पर मतदान की प्रक्रिया कराई जाती है
हालांकि इस पूरी प्रक्रिया के बीच एक पेच यह भी है कि संसद (Parliament) में जब इस प्रस्ताव को लाया जाता है तो स्पीकर जांच के लिए एक कमेटी का गठन करते हैं। इस कमेटी में भारत के चीफ जस्टिस या फिर सुप्रीम कोर्ट के किसी अन्य जज, किसी हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और एक विद्वान कानूनविद को शामिल किया जाता है। कमेटी की रिपोर्ट में यदि संबंधित जज के आचरण पर उठे सवालों को सही पाया जाता है तो फिर सदन में महाभियोग प्रस्ताव पर मतदान की प्रक्रिया कराई जाती है।
महाभियोग की कार्रवाई के तहत हटाए जाने वाले वह देश के पहले जस्टिस होंगे
प्रस्ताव पारित होने पर राष्ट्रपति को सिफारिश के लिए भेजा जाता है कि संबंधित जज को पद से हटा दिया जाए। बता दें यदि जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ प्रस्ताव पारित हुआ तो महाभियोग की कार्रवाई के तहत हटाए जाने वाले वह देश के पहले जस्टिस होंगे। पूर्व चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने इस प्रकरण में एक कमेटी गठित की थी, जिसने जस्टिस वर्मा की भूमिका गलत पाई थी। इसके अलावा 50 लोगों के बयान भी रिकॉर्ड किए गए हैं। इस पूरी रिपोर्ट को पूर्व चीफ जस्टिस ने पीएम और राष्ट्रपति को महाभियोग की सिफारिश के साथ भेजा था।
जस्टिस वर्मा आयोग क्या है?
न्यायमूर्ति वर्मा समिति का गठन आपराधिक कानून में संशोधन की सिफारिश करने के लिए किया गया था ताकि महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपी अपराधियों के लिए त्वरित सुनवाई और कड़ी सजा का प्रावधान किया जा सके।
Read more : National: शिवसेना प्रमुख ने कहा.. मुख्यमंत्री को बदनाम करने की चल रही है साजिश