नई दिल्ली । ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) में बड़े पैमाने पर प्रयोग किए गए स्वदेशी हथियारों से पाकिस्तान को बुरी तरह से धूल चटाने के बाद अब देश की सत्ता से जुड़े सामरिक गलियारों (रक्षा मंत्रालय) में 15 अगस्त यानी जश्न-ए-आजादी की 79वीं वर्षगांठ को जोरशोर से मनाने की तैयारियों का युद्धस्तर पर आगाज हो चुका है। जिसमें स्वदेशी के साथ ही आत्मनिर्भर भारत (Self-reliant india) की मजबूत झलक देखने को मिलेगी।
संभवत: समारोह के लिए 7 तोपों का प्रयोग किया जाएगा
राष्ट्रीय ध्वज को दी जाने वाली 21 तोपों की परंपरागत सलामी के लिए देश में बनी 105 एमएम की लाइट फील्ड गन (LFG) की प्रचंड गर्जना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समारोह के साक्षी बनने वाले हर खासो-आम के मन में राष्ट्रीयता की भावना तीव्र गति से हिलोरे मारने लगेगी। सूत्रों ने बताया कि सेना जल्द ही एलएफजी से दी जाने वाली इस सर्वोच्च सैन्य सलामी का अभ्यास शुरू करेगी। संभवत: समारोह के लिए 7 तोपों का प्रयोग किया जाएगा, तीन राउंड फायर होंगे और सलामी की ये पूरी कवायद करीब 52 सेकंड में पूरी हो जाएगी।
कार्टेरेज और ब्लैंक राउंड्स का प्रयोग किया जाएगा
धमाके के लिए लाइव शेल नहीं बल्कि खासतौर पर डिजाइन किए गए कार्टेरेज और ब्लैंक राउंड्स का प्रयोग किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समारोह की अध्यक्षता करेंगे और उनका लालकिले की प्राचीर से देश के नाम संबोधन भी होगा। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार के तीसरे कार्यकाल में लालकिले से यह पीएम का दूसरा संबोधन होगा। वर्ष 1947 में मिली आजादी के बाद लंबे अर्से तक देश के तमाम राष्ट्रीय पर्वों और कुछ अन्य आयोजनों में अंग्रेजों के शासनकाल की सैन्य सामग्री का इस्तेमाल ही चलन में रहा। लेकिन 2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा की सरकार के गठन के बाद इसमें बड़े पैमाने पर बदलाव देखने को मिल रहा है।
80 के दशक में इन्हें सेना के युद्धक बेड़े में शामिल किया गया था
इसी से जुड़ा हुआ है दो साल पहले 2023 में सरकार द्वारा गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय समारोह में तिरंगे को दी जाने वाली राष्ट्रीय सलामी के लिए स्वदेशी लाइट फील्ड गन का प्रयोग करने का निर्णय। जबकि पहले इन दोनों महत्वपूर्ण समारोह में ब्रिटिश 25-पाउंडर तोप का ही इस्तेमाल किया जाता था। ये तोपें द्वितीय विश्व युद्ध और नॉरमैंडी जैसे युद्धों में प्रयोग की जा चुकी हैं। सलामी के लिए प्रयोग की जाने वाली 105 एमएम की तोप केंद्रीय भारत स्थित मध्य-प्रदेश राज्य के जबलपुर में आयुध फैक्ट्री खमरिया में बनाई गई हैं। 80 के दशक में इन्हें सेना के युद्धक बेड़े में शामिल किया गया था।
तोप लगभग 17 किलोमीटर तक मार कर सकती है
तोप लगभग 17 किलोमीटर तक मार कर सकती है। वजन में ये काफी हल्की हैं, जिसकी वजह से तीन के करीब सैन्यकर्मी आसानी से इन्हें संचालित कर सकते हैं। साथ ही इनकी मदद से सेना देश के पहाड़ी और दुर्गम ऊंचाई वाले बफीर्ले रेगिस्तानी इलाकों में जरूरत पड़ने पर दुश्मन के ठिकानों पर भी सटीकता के साथ अचूक वार कर सकती है।
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