नई दिल्ली । कभी भारतीय युवाओं के लिए सपनों का गंतव्य माना जाने वाला अमेरिका (America) अब अपनी पुरानी चमक खोता दिख रहा है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में संयुक्त राज्य अमेरिका में इस साल करीब 40 प्रतिशत तक की भारी गिरावट दर्ज की गई है।
विश्वविद्यालयों के लिए भी चिंता का विषय
यह बदलाव न केवल छात्रों की प्राथमिकताओं में बदलाव का संकेत है, बल्कि उन अमेरिकी विश्वविद्यालयों के लिए भी चिंता का विषय बन गया है जो बड़ी हद तक अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर निर्भर रहती हैं। अब भारतीय छात्र शिक्षा की गुणवत्ता के साथ-साथ वीजा स्थिरता, जीवन-यापन की लागत और करियर अवसरों को भी अहम मानदंड बना रहे हैं।
सख्त वीजा नीति बनी बड़ी वजह
अमेरिका से छात्रों का यह मोहभंग कई कारकों का परिणाम है। सबसे बड़ी वजह वहां की सख्त इमिग्रेशन पॉलिसी और वीजा प्रक्रिया में बढ़ती अनिश्चितता है। हाल के वर्षों में वीजा नियमों में सख्ती के कारण कई छात्रों को समय पर प्रवेश नहीं मिल पाया। पीक एप्लीकेशन सीजन के दौरान एफ-1 वीजा इंटरव्यू को अस्थायी रूप से निलंबित कर देने और इंटरव्यू स्लॉट के लिए लंबा इंतजार करने की स्थिति ने हजारों छात्रों को प्रभावित किया है।
बढ़ता वीजा रिजेक्शन और बढ़ती लागत
एफ-1 वीजा (F-1 Visa) रिजेक्शन रेट में लगातार बढ़ोतरी से छात्र समुदाय में डर और भ्रम का माहौल बन गया है। सोशल मीडिया अकाउंट्स की जांच और मनमाने ढंग से वीजा रद्द होने जैसी घटनाओं ने भी उनका विश्वास कमजोर किया है। इसके साथ ही, अमेरिका में पढ़ाई और रहने की लागत में तेजी से वृद्धि हो रही है। अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए ट्यूशन फीस और जीवन-यापन का वार्षिक खर्च कई संस्थानों में एक लाख डॉलर तक पहुंच चुका है।
करियर संभावनाओं पर भी असर
एच-1बी वर्क वीजा के लिए प्रस्तावित 100,000 डॉलर की फीस और वर्क परमिट नियमों में संभावित बदलावों ने स्नातक के बाद अमेरिका में करियर बनाने की संभावनाओं को और जटिल बना दिया है।
ओपीटी (ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग) और एच-1बी वीजा के भविष्य को लेकर असमंजस ने भी छात्रों की सोच को प्रभावित किया है।
यूरोप और अन्य देशों की ओर रुख
इस बीच, भारतीय छात्र अब वैकल्पिक देशों की ओर रुख कर रहे हैं, जहां शिक्षा की गुणवत्ता, वीजा स्थिरता और रोजगार के अवसर अधिक सुनिश्चित हैं। जर्मनी, फ्रांस और नीदरलैंड जैसे यूरोपीय देश अंग्रेजी में पढ़ाए जाने वाले कोर्स, कम ट्यूशन फीस और पढ़ाई के बाद काम करने के स्पष्ट अधिकारों के कारण आकर्षक बन रहे हैं।
जर्मनी विशेष रूप से अपने मजबूत STEM प्रोग्राम्स और किफायती शिक्षा प्रणाली के कारण पसंद किया जा रहा है।
कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया बने नए पसंदीदा गंतव्य
कनाडा, ब्रिटेन (Britain) और ऑस्ट्रेलिया भी भारतीय छात्रों के नए पसंदीदा गंतव्य बन चुके हैं।
कनाडा अपने सहज वीजा प्रोसेस और स्थायी निवास की स्पष्ट संभावनाओं के लिए जाना जाता है, जबकि ब्रिटेन का ग्रेजुएट वर्क वीजा और ऑस्ट्रेलिया की रोजगार नीतियां छात्रों को आकर्षित कर रही हैं।
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