पटना। बिहार में चुनावी सरगर्मी के बीच निर्वाचन आयोग की ओर से जारी नवीनतम वोटर लिस्ट (Voter List) ने राजनीतिक दलों की टेंशन बढ़ा दी है। खासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जदयू के लिए यह आंकड़े चिंता का सबब बने हुए हैं। सूची से पुरुषों की तुलना में ज्यादा महिला मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं, जबकि महिला वोट को नीतीश कुमार का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है।
महिला वोट : नीतीश का सबसे बड़ा सहारा
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के कार्यकाल में बिहार की राजनीति में महिला वोटरों ने निर्णायक भूमिका निभाई है। 2015 से लेकर 2024 तक हर चुनाव में पुरुषों से अधिक महिलाओं ने मतदान किया।
महिला मतदाता अब एक अलग जाति की तरह माने जाते हैं और सभी दल उन्हें साधने में जुटे रहते हैं। ऐसे में महिला वोटरों की संख्या घटने से राजनीतिक समीकरण पर गहरा असर पड़ सकता है।
आयोग की सफाई
चुनाव आयोग ने सफाई दी है कि महिलाओं के नाम मायके और ससुराल दोनों जगह दर्ज थे, इसलिए डुप्लिकेट प्रविष्टि हटाई गई है। साथ ही मृत्यु, पता बदलने, लापता होने और कम उम्र के कारण भी बड़ी संख्या में नाम काटे गए।
वोटर लिस्ट में बड़ा अंतर
- 1 अगस्त तक: 65 लाख नाम हटे
- 30 सितंबर तक: 3.66 लाख और नाम हटे
कारण:
- 62,000 नाम मृत्यु के कारण हटे
- 1.64 लाख नाम पता बदलने पर हटे
- 81,000 नाम डुप्लिकेट प्रविष्टि के कारण हटे
- 48,000 नाम लापता होने के कारण हटे
- 100 मामले कम उम्र के पाए गए
महिला वोटरों की सबसे अधिक कटौती वाले जिले
- पूर्णिया: 76,000 महिला वोटर, 40,000 पुरुष वोटर कम
- सुपौल: 40,000 महिला वोटर, 11,000 पुरुष वोटर कम
- सीवान: 78,000 महिला वोटर, 28,000 पुरुष वोटर कम
- पटना: 50,000 महिला वोटर, 36,000 पुरुष वोटर कम
महिला वोट बैंक पर नीतीश की पकड़
बिहार में महिला मतदाताओं की जातीय-सामाजिक हिस्सेदारी काफी अहम है।
- 2.99% कुर्मी
- 14.46% यादव
- 19.6% अनुसूचित जाति
- 17.8% मुस्लिम
- 3.7% ब्राह्मण
- 3.4% राजपूत
- 2.9% भूमिहार
इस वोट बैंक पर अब तक नीतीश कुमार की पकड़ सबसे मजबूत रही है।
नीतीश का महिला फोकस
अब तक किसी भी दल या नेता ने महिला वोटरों में सेंध नहीं लगाई है। यही कारण है कि इस चुनाव में भी नीतीश कुमार ने महिला वोटरों को साधने पर सबसे ज्यादा फोकस किया है।
हाल ही में उन्होंने जीविका दीदी (Jiwika Didi) आशा वर्कर, आंगनबाड़ी सेविका और महिला शिक्षिकाओं के लिए कई घोषणाएं कीं।
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