नई दिल्ली: लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और चुनाव आयोग के बीच चल रहा विवाद 2 अगस्त 2025 को और गहरा गया। राहुल गांधी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में वोट चोरी और मतदाता सूची में हेरफेर के गंभीर आरोप लगाए थे, जिन्हें चुनाव आयोग (EC) ने “बेबुनियाद” और “गैर-जिम्मेदाराना” करार देते हुए खारिज कर दिया। आयोग ने इस मुद्दे पर राहुल गांधी को 12 जून 2025 को लिखे एक पत्र का हवाला दिया, जिसका जवाब अभी तक नहीं मिला। आयोग ने सवाल उठाया कि क्या राहुल के दावे केवल मीडिया में सुर्खियां बटोरने के लिए हैं?
राहुल गांधी ने दावा किया था कि उनके पास वोट चोरी का “एटम बम” जैसा सबूत है, जो चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाएगा। उन्होंने 7 जून को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित एक लेख में महाराष्ट्र चुनाव में “मैच फिक्सिंग” का आरोप लगाया था, जिसमें पांच चरणों की बात कही गई: 1) चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में हेरफेर, 2) मतदाता सूची में फर्जी वोटर जोड़ना, 3) मतदान प्रतिशत बढ़ाना, 4) भाजपा के पक्ष में लक्षित वोटिंग, और 5) सबूत छिपाना। राहुल ने यह भी दावा किया कि महाराष्ट्र में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बीच पांच महीनों में 39 लाख नए वोटर जोड़े गए, जो 2019 से 2024 के बीच जोड़े गए 32 लाख वोटरों से अधिक है।
चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि मतदाता सूची तैयार करने की प्रक्रिया पारदर्शी है और सभी राजनीतिक दलों, जिसमें कांग्रेस भी शामिल है, को ड्राफ्ट और अंतिम सूचियां उपलब्ध कराई जाती हैं। आयोग ने बताया कि महाराष्ट्र चुनाव के लिए 1,03,727 पार्टी प्रतिनिधियों, जिसमें 27,099 कांग्रेस के थे, के साथ चर्चा की गई थी। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल 89 अपीलें प्राप्त हुईं, जो दावों की गंभीरता को कमजोर करती हैं। इसके अलावा, EVM और VVPAT स्लिप्स की जांच में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राहुल को चुनौती दी कि अगर उनके पास “एटम बम” जैसा सबूत है, तो उसे तुरंत सार्वजनिक करें। वहीं, भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने राहुल के बयानों को “अलोकतांत्रिक” करार दिया। आयोग ने राहुल के “वोट चोरी” जैसे शब्दों और अधिकारियों को धमकी देने की भाषा पर आपत्ति जताई, इसे लोकतांत्रिक संस्थानों की गरिमा के खिलाफ बताया।
राहुल ने 5 अगस्त को बेंगलुरु में सबूत पेश करने की बात कही है, लेकिन आयोग का कहना है कि बिना ठोस सबूत और औपचारिक शिकायत के ये आरोप विश्वसनीयता खो देते हैं। यह विवाद भारत के चुनावी तंत्र की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहा है