हैदराबाद। बीआरएस कार्यकारी अध्यक्ष के.टी. रामाराव (KTR) ने कहा कि प्रस्तावित सीड्स बिल में किसानों की अपेक्षा कॉर्पोरेट कंपनियों (Corporate companies) के हितों को अधिक महत्व दिया गया है, इसलिए इसे तुरंत रोका जाना चाहिए। गुरुवार को जारी एक बयान में केटीआर ने कहा कि किसी भी नए सीड्स बिल में किसान को केंद्र में रखना चाहिए और यह किसान कल्याण पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि बिल में राज्य सरकारों की भूमिका को समाप्त कर दिया गया है, इसलिए सभी को इसका विरोध करना चाहिए।
चर्चा के बाद ही बिल को बढ़ाए आगे
केटीआर ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को किसानों के संगठनों, बीज विशेषज्ञों, कृषि विशेषज्ञों और राजनीतिक दलों से विस्तृत चर्चा के बाद ही इस बिल को आगे बढ़ाना चाहिए। उन्होंने बताया कि पार्टी पहले ही केंद्र सरकार को प्रस्तावित ड्राफ्ट सीड्स बिल पर विस्तृत सुझाव सौंप चुकी है। बीआरएस कार्यकारी अध्यक्ष ने कहा कि भारत राष्ट्र समिति केंद्र सरकार के इस ड्राफ्ट सीड्स बिल का कड़ा विरोध करती है। उन्होंने कहा कि यह बिल किसानों को गंभीर नुकसान पहुंचाएगा। इसलिए केंद्र को इसे पूरी तरह रोक देना चाहिए और आगे की कार्रवाई केवल किसानों, किसान संघों, विशेषज्ञों और राजनीतिक दलों से चर्चा के बाद ही करनी चाहिए।
राज्य सरकारों के पास बीज कीमत नियंत्रण का अधिकार भी हो जाएगा समाप्त
केटीआर ने बताया कि बिल में मिलावटी बीजों पर रोक लगाने के उपायों पर स्पष्टता नहीं है और नकली बीजों से नुकसान झेलने वाले किसानों को समय पर मुआवजा देने की कोई गारंटी नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि बिल में ऐसे प्रावधान हैं जिनसे कॉर्पोरेट कंपनियां बीजों की कीमतों पर प्रभाव डाल सकती हैं, और राज्य सरकारों के पास बीज कीमत नियंत्रण का अधिकार भी समाप्त हो जाएगा। उन्होंने कहा कि बिल बीज कंपनियों को नकली बीज उत्पादन के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराता और जवाबदेही केवल विक्रेताओं तथा सप्लाई चेन पर डाल देता है। नकली बीजों से जुड़े मामलों में राष्ट्रीय स्तर पर कंपनियों को ब्लैकलिस्ट करने, भारी दंड या सख्त सजा का भी कोई प्रावधान नहीं है।
भारत में बीज बेचने की आसान अनुमति देने वाले प्रावधान शामिल
केटीआर ने कहा कि देश के कई हिस्सों में किसान अभी भी पारंपरिक रूप से अपने बीजों को बचाते, तैयार करते और इस्तेमाल करते हैं, लेकिन बिल ऐसे समूहों को कोई सुरक्षा नहीं देता। उन्होंने यह भी कहा कि बिल में विदेशी कंपनियों को बिना पर्याप्त परीक्षण के भारत में बीज बेचने की आसान अनुमति देने वाले प्रावधान शामिल हैं, जिससे राष्ट्रीय बीज सुरक्षा और बीज संप्रभुता खतरे में पड़ सकती है।
उन्होंने कहा कि बिल में राज्य सरकारों या कृषि विश्वविद्यालयों को कोई महत्व नहीं दिया गया है। पूरा बिल केंद्र को राज्यों के कृषि से जुड़े महत्वपूर्ण बीज मुद्दों पर नियंत्रण देता है, जिससे राज्यों की स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार कानून बनाने की क्षमता कमजोर होगी। केटीआर ने कहा कि किसान-केंद्रित सीड्स बिल लाना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है और ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ के नाम पर कॉर्पोरेट कंपनियों को नियंत्रण सौंपने की हर कोशिश को छोड़ देना चाहिए।
बीज नियंत्रण आदेश 1983 क्या है?
इस आदेश के माध्यम से सरकार ने बीजों की गुणवत्ता, भंडारण, बिक्री और वितरण पर सख़्त नियम लागू किए थे। आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत बना यह प्रावधान डीलरों के लाइसेंस, निरीक्षण और मानक गुणवत्ता सुनिश्चित करने पर केंद्रित है, ताकि किसानों तक भरोसेमंद बीज पहुँच सकें।
बीज विधेयक 2025 क्या है?
प्रस्तावित कानून का उद्देश्य बीज क्षेत्र को आधुनिक मानकों के अनुसार नियंत्रित करना है। इसमें पंजीकरण, गुणवत्ता परीक्षण, लेबलिंग, ट्रेसबिलिटी और नियम उल्लंघन पर कड़े दंड जैसे प्रावधान शामिल किए गए हैं। इस विधेयक के जरिए किसानों को बेहतर गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध कराना और कंपनियों की जवाबदेही तय करना लक्ष्य है।
कृषि विभाग से मुफ्त बीज कैसे प्राप्त करें?
मुफ्त या सब्सिडी वाले बीज पाने के लिए किसान को स्थानीय कृषि कार्यालय या कृषि विज्ञान केंद्र में पंजीकरण कराना होता है। आधार, भूमि दस्तावेज और बैंक विवरण जमा किए जाते हैं। सरकार मौसम और योजनाओं के अनुसार पात्र किसानों को बीज वितरित करती है, इसलिए निर्धारित समय पर आवेदन करना महत्वपूर्ण होता है।
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