काठमांडू, 9 सितंबर 2025 – नेपाल (Nepal) की राजधानी काठमांडू इन दिनों लगातार उबाल पर है। सोशल मीडिया बैन (Social Media Ban) से शुरू हुआ यह आंदोलन अब एक बड़े जनविरोध में तब्दील हो चुका है। युवाओं का गुस्सा अब सिर्फ इंटरनेट तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और जवाबदेही की मांग इसके केंद्र में आ गई है।

युवाओं की मांग: “हमें नौकरी चाहिए, सिर्फ नियम नहीं”
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि नेपाल की मौजूदा सरकार केवल कानून और नियंत्रण पर ध्यान देती है, लेकिन युवाओं के लिए अवसर और रोजगार पैदा करने में पूरी तरह विफल रही है।
एक प्रदर्शनकारी छात्र ने कहा – “सोशल मीडिया हमारी आवाज़ थी, लेकिन हमारी असली समस्या बेरोज़गारी है। हमें ऐसी सरकार चाहिए जो नौकरी दे सके, न कि सिर्फ बैन लगाए।”
संसद के बाहर सख़्त सुरक्षा
काठमांडू में संसद भवन और प्रमुख सरकारी इमारतों के बाहर सेना और पुलिस की भारी तैनाती है। पत्रकारों ने देखा कि सुरक्षा बल बैरिकेड्स और आंसू गैस के साथ तैनात हैं। सरकार को डर है कि प्रदर्शनकारी सीमा लांघ सकते हैं और संसद भवन तक घुसने की कोशिश कर सकते हैं।

प्रधानमंत्री निशाने पर
हालांकि गृह मंत्री रमेश लेखक ने पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया है, लेकिन गुस्से से भरे युवाओं की मांग इससे कहीं आगे है। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। कई प्रदर्शनकारियों ने साफ़ कहा कि “सिर्फ एक मंत्री का इस्तीफ़ा काफी नहीं है, हमें पूरी व्यवस्था बदलनी है।”
बैन हटने के बाद भी गुस्सा कायम
सरकार ने विरोध की तीव्रता देखकर सोशल मीडिया पर लगा प्रतिबंध हटा लिया, लेकिन यह कदम अब बहुत देर से उठाया गया माना जा रहा है। 19 से ज्यादा लोगों की मौत और सैकड़ों घायल होने के बाद यह आंदोलन अब सरकारी नीतियों के खिलाफ एक व्यापक असंतोष में बदल गया है।
नतीजा क्या होगा?
विश्लेषकों का मानना है कि यह आंदोलन नेपाल की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकता है। युवाओं की यह मांग अब सिर्फ “इंटरनेट की आज़ादी” तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह नौकरी, पारदर्शिता और सशक्त लोकतंत्र की जंग बन चुकी है।
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