नई दिल्ली । पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) एनवी रमना ने अदालतों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि बिना उचित प्रतिनिधित्व लैंगिक समानता पर बात करना केवल दिखावा है।
सुप्रीम कोर्ट में महिला जजों की संख्या कम
रमना ने बताया कि अब तक सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में केवल 11 महिला जज बनी हैं। इनमें से तीन ने 31 अगस्त 2021 को उनके कार्यकाल में शपथ ली थी। वर्तमान में जस्टिस बीवी नागरत्ना 2027 में देश की पहली महिला सीजेआई बनने जा रही हैं, हालांकि उनका कार्यकाल सिर्फ 36 दिनों का होगा।
लैंगिक विविधता और सामाजिक प्रतिबिंब जरूरी
रमना ने कहा कि संस्थाओं को समाज का प्रतिबिंब होना चाहिए और लैंगिक विविधता केवल औपचारिकता नहीं बल्कि न्याय प्रणाली को समृद्ध करने के लिए आवश्यक है।
न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे पर चिंता
पूर्व सीजेआई ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में ढांचागत कमी के कारण छह में से तीन कोर्टरूम बंद होने का उदाहरण दिया। उन्होंने अपने कार्यकाल में नेशनल ज्यूडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर अथॉरिटी बनाने की सिफारिश की थी, लेकिन यह प्रयास सफल नहीं हो सका।
अधिवक्ता सिंघवी का समर्थन
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने रमना के विचारों का समर्थन किया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिशें जल्द लागू होनी चाहिए। उन्होंने अदालतों में लंबित मामलों की संख्या और जजों की कमी के बीच संबंध भी बताया।
लैंगिक संतुलन और ढांचागत सुधार समय की मांग
सिंघवी ने कहा कि हाईकोर्ट दशकों से दो-तिहाई क्षमता पर काम कर रहे हैं, जबकि निचली अदालतें 25,000 जजों की स्वीकृत संख्या के केवल चार-पांचवें हिस्से पर चल रही हैं। न्यायपालिका में लैंगिक संतुलन और ढांचागत सुधार अब समय की मांग बन गए हैं।
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