बिहार (Bihar) की सियासत में कांग्रेस (Congress) 35 साल बाद सत्ता में वापसी की कोशिश में जुटी है। राहुल गांधी की 16 दिन की ‘वोटर अधिकार यात्रा’, जो 17 अगस्त, 2025 को सासाराम से शुरू हुई और 1 सितंबर को पटना में विशाल रैली के साथ समाप्त होगी, इस दिशा में एक रणनीतिक कदम है। इस यात्रा में राहुल गांधी के साथ राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता तेजस्वी यादव, प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव, एमके स्टालिन और रेवंत रेड्डी जैसे इंडिया ब्लॉक के प्रमुख नेता शामिल हुए हैं।
1,300 किलोमीटर की यह यात्रा 20 से अधिक जिलों को कवर कर रही है, जिसमें दलित, पिछड़े, और अल्पसंख्यक वोटरों को साधने पर जोर है।
रणनीतिक बदलाव और नेतृत्व परिवर्तन
2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार में कांग्रेस को केवल तीन सीटें मिली थीं, जिसके बाद राहुल गांधी ने बिहार में सियासी रणनीति को तेज किया। उन्होंने आरजेडी के साथ गठबंधन को मजबूत रखते हुए संगठन में बड़े बदलाव किए। अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाकर दलित समुदाय से आने वाले राजेश राम को बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। साथ ही, राहुल के करीबी कृष्णा अल्लावरू को बिहार का प्रभारी और सुशील पासी व शहनवाज़ आलम को सह-प्रभारी नियुक्त किया गया। ये बदलाव दलित और अल्पसंख्यक वोटरों को लुभाने की रणनीति का हिस्सा हैं।
वोटर अधिकार यात्रा का मकसद
राहुल गांधी ने इस यात्रा को ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ के सिद्धांत की रक्षा और ‘वोट चोरी’ के खिलाफ अभियान बताया है। उन्होंने चुनाव आयोग और बीजेपी पर विशेष गहन संशोधन (SIR) के जरिए वोटर लिस्ट में हेरफेर का आरोप लगाया। मधुबनी में एक सभा में राहुल ने दावा किया कि यह ‘चोरी’ गुजरात से शुरू हुई और 2014 से राष्ट्रीय स्तर पर हो रही है। प्रियंका गांधी ने मिथिलांचल में महिला वोटरों को साधने और माता सीता के मंदिर में पूजा कर हिंदुत्व के आरोपों को कम करने की कोशिश की
चुनौतियां और विपक्ष का जवाब
हालांकि, यात्रा को विरोध का भी सामना करना पड़ा। तेजस्वी के भाई तेज प्रताप यादव ने इसे ‘जमीन से कटी’ यात्रा बताया, जबकि बीजेपी और जेडीयू ने इसे ‘पंक्चर टायर’ करार दिया। बीजेपी ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के एजेंडे को मजबूत करने के लिए पुनौरा धाम में माता सीता मंदिर की आधारशिला रखी, जिससे सियासी माहौल और गर्म हो गया।
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