वाशिंगटन,। अमेरिका के हवाई क्षेत्र से छोड़ी जाने वाली न्यूक्लियर क्रूज़ मिसाइल (AGM-181 LRSO) की तस्वीरें और तकनीकी विवरण सार्वजनिक होने के बाद वैश्विक सुरक्षा पर तीखी बहस छिड़ गई है। कैलिफ़ोर्निया में एक प्लेनस्पॉटर द्वारा ली गई हालिया तस्वीरों ने पेंटागन की उस लंबे समय से गोपनीय रखी जा रही परियोजना को सामने ला दिया है।
क्या खुलासा हुआ-बी-52 में लटकती मिसाइल की तस्वीरें
रिपोर्ट्स के मुताबिक तस्वीरों में AGM-181 LRSO को बी-52 बॉम्बर के भीतर लटकते हुए दिखाया गया है। अधिकारियों ने कहा है कि भविष्य में इसे बी-21 रैडार-स्टेल्थ बॉम्बर पर भी तैनात करने का लक्ष्य है। फोटो-आधारित खुलासे ने उस तकनीक और रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं जिसका उद्देश्य दुश्मन के एयर डिफेंस को चकमा देकर निशाना लगाना बताया जा रहा है।
तकनीकी विशिष्टताएँ और संभावित वारहेड
तकनीकी जानकारियों के अनुसार (LRSO) की लंबाई लगभग 6.4 मीटर और वजन करीब 1,360 किलोग्राम है। यह सबसोनिक गति पर 2,500 किलोमीटर से अधिक दूरी तक उड़ान भर सकती है। मिसाइल में कथित तौर पर W80-4 नामक न्यूक्लियर वॉरहेड के प्रयोग की संभावना है, जिसका वेरिएबल यील्ड 5 से 150 किलोटन के बीच बताया जा रहा है। मार्गदर्शन के लिए इनर्शियल, GPS और टेरकॉम सिस्टम दिए गए हैं, जबकि स्टेल्थ फीचर्स व फोल्डिंग विंग इसे रडार में कम दिखाई देने वाला बनाते हैं।
विकास, टेस्ट और तैनाती का रोडमैप
प्रोजेक्ट का विकास 2017–2021 के दौरान तेज़ी से आगे बढ़ा और इसमें रिथियॉन जैसी प्रमुख रक्षा कंपनियों की भागीदारी रही। पहली टेस्ट फ्लाइट 2025 में हुई बताई जा रही है और आधिकारिक लक्ष्य इसे 2030 तक तैनात करना रखा गया है। अमेरिकी पेंटागन इसे पुराने (AGM-86B) का आधुनिक अपग्रेड करार दे रहा है।
रणनीतिक निहितार्थ डिटरेंस की परिभाषा बदलने की संभावना
विशेषज्ञों का कहना है कि LRSO जैसी क्षमताएँ पारंपरिक डिटरेंस के स्वरूप को जटिल बना सकती हैं। कम ऊँचाई पर चुपके से उड़ने वाली, सटीक और न्यूक्लियर-क्षमतावाला क्रूज मिसाइल पूर्व-सक्रियता और प्रथम-प्रहार की धारणा को प्रभावित कर सकती है। पेंटागन इसे प्रतिस्पर्धियों — विशेषकर रूस और चीन — की बढ़ती मिसाइल व हाइपरसोनिक क्षमताओं के जवाब के रूप में पेश कर रहा है।
आलोचना और सुरक्षा चिंताएँ
न्यून सुपरिवेillance और गोपनीयता भंग होने के बाद आलोचक चेतावनी दे रहे हैं कि ऐसे हथियार क्षेत्रीय संवेदनशीलता बढ़ा सकते हैं और मिस-अकल्पनीय रणनीतिक जवाबी कार्रवाइयों का जोखिम बढ़ा सकते हैं। कुछ विद्वानों का तर्क है कि तैनाती से संचार में चूक या मिस-इंटरप्रेटेशन के कारण वैश्विक तनाव बढ़ सकता है।
Read More :