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National: उपराष्ट्रपति धनखड़ के इस्तीफे पर पहली बार बोलें अमित शाह

Vinay
Vinay
National: उपराष्ट्रपति धनखड़ के इस्तीफे पर पहली बार बोलें अमित शाह

21 जुलाई, 2025 को भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति (Vice President Of India) और राज्यसभा अध्यक्ष जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhad) ने अपने पद से अचानक इस्तीफा दे दिया, जिसने पूरे देश को हैरान कर दिया। उनके कार्यकाल में अभी दो साल शेष थे, लेकिन उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए यह अप्रत्याशित कदम उठाया

इस इस्तीफे ने सियासी गलियारों में तमाम कयासों को जन्म दिया। विपक्ष ने इसे लेकर सरकार पर कई सवाल उठाए, यह दावा करते हुए कि धनखड़ को “चुप” कराया गया है। इस बीच, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में इस मुद्दे पर खुलकर बात की और विपक्ष के दावों को खारिज करते हुए स्थिति को स्पष्ट किया।

इस्तीफे की पृष्ठभूमि

जगदीप धनखड़, जो 11 अगस्त, 2022 को भारत के 14वें उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति बने थे, ने अपने इस्तीफे में लिखा, “स्वास्थ्य कारणों और चिकित्सकीय सलाह का पालन करने के लिए मैं उपराष्ट्रपति के पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देता हूं।” उन्होंने अपने पत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार के अन्य सदस्यों के साथ अपने कार्यकाल के दौरान सहयोग के लिए आभार भी व्यक्त किया।

हालांकि, उनके इस अचानक कदम ने कई सवाल खड़े किए। विपक्षी नेताओं ने दावा किया कि धनखड़ का इस्तीफा सामान्य नहीं है और इसके पीछे कोई “राजनीतिक दबाव” हो सकता है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने तो यहां तक पूछा, “इस्तीफे के बाद धनखड़ साहब कहां गायब हैं?”

अमित शाह का जवाब

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में एएनआई के साथ एक पॉडकास्ट में इस मुद्दे पर अपनी बात रखी। उन्होंने स्पष्ट किया कि धनखड़ का इस्तीफा पूरी तरह से स्वास्थ्य कारणों से था और इसे अनावश्यक रूप से विवादित करने की जरूरत नहीं है।

शाह ने कहा, “धनखड़ साहब का इस्तीफा अपने आप में स्पष्ट है। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है और सरकार के साथ अपने अच्छे कार्यकाल के लिए आभार व्यक्त किया है।” विपक्ष के उस दावे पर कि धनखड़ को “नजरबंद” किया गया है, शाह ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा,

“सच और झूठ की व्याख्या केवल विपक्ष के बयानों पर आधारित नहीं होनी चाहिए। हमें बात का बतंगड़ नहीं बनाना चाहिए।”

“ऐसा लगता है कि सच और झूठ की आपकी व्याख्या विपक्ष की बातों पर आधारित है. हमें बात का बतंगड़ नहीं बनाना चाहिए. धनखड़ एक संवैधानिक पद पर आसीन थे और उन्होंने संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों को निभाया. उन्होंने निजी स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दिया, इस मुद्दे पर ज़्यादा विचार-विमर्श नहीं करना चाहिए.”

विपक्ष का रुख

विपक्ष ने धनखड़ के इस्तीफे को लेकर सरकार पर कई आरोप लगाए हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा, “देश के इतिहास में यह पहली बार है कि एक उपराष्ट्रपति के इस्तीफे के साथ-साथ उनकी चुप्पी को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।” कुछ विपक्षी नेताओं ने यह तक दावा किया कि धनखड़ को सरकार ने “चुप” कराया है। इन आरोपों ने सोशल मीडिया पर भी व्यापक चर्चा को जन्म दिया।

एक एक्स पोस्ट में यूजर ने लिखा, “धनखड़ जी जैसे सम्मानित व्यक्ति का अचानक इस्तीफा और फिर उनकी अनुपस्थिति सवाल उठाती है।” वहीं, कुछ अन्य यूजर्स ने सरकार का बचाव करते हुए कहा, “स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा देना कोई नई बात नहीं है। विपक्ष इसे राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहा है।”

सामाजिक और राजनीतिक निहितार्थ

धनखड़ का इस्तीफा न केवल एक संवैधानिक पद से हटने की घटना है, बल्कि यह भारतीय राजनीति में पारदर्शिता और जवाबदेही के सवाल को भी सामने लाता है। धनखड़, जो पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल भी रह चुके हैं, अपनी स्पष्टवादिता और संवैधानिक कर्तव्यों के प्रति निष्ठा के लिए जाने जाते हैं।

उनके कार्यकाल में राज्यसभा की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने में उनकी भूमिका सराहनीय रही। ऐसे में, उनके अचानक इस्तीफे ने कई लोगों को आश्चर्यचकित किया।

अमित शाह ने इस मामले को अनावश्यक रूप से तूल न देने की सलाह दी, लेकिन विपक्ष का मानना है कि यह एक गंभीर मुद्दा है, जिस पर सरकार को और स्पष्टता देनी चाहिए। यह विवाद एक बार फिर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच तनाव को उजागर करता है, जहां हर मुद्दे को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की जाती है।

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