लद्दाख के जाने-माने पर्यावरणविद और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) इन दिनों गंभीर विवादों में घिर गए हैं। उनकी संस्था हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स लद्दाख (HIAL) पर विदेशी फंडिंग से जुड़े आरोपों की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) कर रहा है। साथ ही, इस वर्ष की शुरुआत में उनकी पाकिस्तान यात्रा ने भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
CBI सूत्रों के मुताबिक, जांच लगभग दो महीने पहले शुरू की गई थी। संदेह है कि HIAL या उससे जुड़ी इकाइयों ने Foreign Contribution Regulation Act (FCRA) के नियमों का उल्लंघन करते हुए विदेशों से चंदा लिया हो। हालांकि अब तक कोई औपचारिक FIR दर्ज नहीं हुई है, लेकिन एजेंसियां दस्तावेज़ों और वित्तीय लेन-देन की गहन पड़ताल कर रही हैं।
सोनम वांगचुक पर दूसरा बड़ा सवाल उनकी 6 फरवरी 2025 की पाकिस्तान यात्रा को लेकर है। सुरक्षा हलकों का मानना है कि इस यात्रा का उद्देश्य और इसके दौरान हुए संपर्कों की प्रकृति स्पष्ट नहीं है। यही वजह है कि इसे भी जांच के दायरे में रखा गया है। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर सरकार से पारदर्शिता की मांग की है, जबकि समर्थकों का कहना है कि इसे अनावश्यक रूप से राजनीतिक रंग दिया जा रहा है।
इसी बीच, अगस्त 2025 में लद्दाख प्रशासन ने HIAL को आवंटित की गई जमीन का अधिकार रद्द कर दिया। प्रशासन का तर्क था कि संस्था ने जमीन का उपयोग आवंटन की शर्तों के अनुरूप नहीं किया। इस कदम ने स्थानीय स्तर पर असंतोष को और भड़का दिया। कुछ ही हफ्ते पहले लेह शहर में हुई हिंसा, पथराव और आगजनी की घटनाओं ने माहौल को और तनावपूर्ण बना दिया।
खुद वांगचुक का कहना है कि उनकी संस्था विदेशी दान पर निर्भर नहीं रहना चाहती। उनका दावा है कि जिन लेन-देन को विदेशी योगदान बताया जा रहा है, वे दरअसल सेवा अनुबंध (Service Agreements) थे और उन पर टैक्स भी चुकाया गया था। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि एजेंसियां अपने दायरे से बाहर जाकर दस्तावेज़ मांग रही हैं।
यह पूरा मामला केवल कानूनी नहीं बल्कि राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से भी संवेदनशील है। लद्दाख में लंबे समय से राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में विशेष प्रावधान की मांग चल रही है। ऐसे में सरकार और स्थानीय नेतृत्व के बीच विश्वास की खाई और चौड़ी हो सकती है।
फिलहाल, CBI की जांच जारी है और आने वाले समय में ही स्पष्ट होगा कि वांगचुक और उनकी संस्था पर लगे आरोप कितने मजबूत साबित होते हैं। पर इतना तय है कि इस विवाद ने लद्दाख की राजनीति और देश की बौद्धिक बहस दोनों को नई दिशा दे दी है।
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