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National : नेपाल से दुनिया तक, छात्रों के आंदोलनों ने हिलाई सत्ता

Anuj Kumar
Anuj Kumar
National : नेपाल से दुनिया तक, छात्रों के आंदोलनों ने हिलाई सत्ता

नई दिल्ली । नेपाल में जिस तरह से युवाओं का आंदोलन भड़का उसकी तस्वीर पूरी दुनिया ने देखी। फेसबुक, इंस्टाग्राम सहित सोशल मीडिया साइट्स (Social Media Sites) पर बैन से शुरू हुआ विवाद बड़े जनाक्रोश में बदल गया। इसके निशाने पर प्रधानमंत्री ओली की कुर्सी आ गई। उन्हें न केवल अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा बल्कि जान बचाने के लिए खुफिया जगह पर छिपने को भी मजबूर हो गए।

भारत में भी छात्र आंदोलनों का बड़ा असर

यह कोई पहली बार नहीं है, जब छात्रों का आक्रोश सत्ता के खिलाफ भड़का हो। नेपाल (Nepal) से पहले चीन, अमेरिका, फ्रांस के साथ-साथ भारत भी युवा प्रदर्शनकारियों के निशाने पर आ चुका है।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यहां छात्र आंदोलनों ने कई बार राजनीति को प्रभावित किया है। सीएए के खिलाफ प्रदर्शनों, तेलंगाना राज्य की मांग और अन्य क्षेत्रीय आंदोलनों में छात्रों की बड़ी भूमिका रही है।

इमरजेंसी और जेपी आंदोलन से गिरी इंदिरा सरकार

वीपी सिंह की सरकार गिराने से लेकर इमरजेंसी विरोध और जेपी आंदोलन (J P Protest) तक, छात्रों का योगदान अहम रहा। 1977 में हुए चुनावों में इंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़ा।
इसी तरह 60 के दशक में शुरू हुआ नक्सल आंदोलन भी छात्रों से ही जुड़ा था। भारत की आजादी की लड़ाई में भी छात्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

असम आंदोलन से जन्मी नई पार्टी

आरक्षण आंदोलन और असम आंदोलन भी केंद्र की सत्ता को हिलाने में सफल रहे।
असम आंदोलन के बाद 1985 में असम गण परिषद का गठन हुआ। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और ऑल असम गण संग्राम परिषद ने मिलकर इसे बनाया। इसके पहले अध्यक्ष प्रफुल्ल कुमार महंत बने, जो बाद में युवा मुख्यमंत्री भी बने।

फ्रांस की छात्र क्रांति ने बदली सोच

विदेशों में देखें तो फ्रांस की छात्र क्रांति बेहद मशहूर है। यह राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रदर्शन था, जिसमें मजदूरों ने भी साथ दिया। दो-तिहाई मजदूर बेहतर कामकाज की स्थिति की मांग कर रहे थे।
सरकार तो बच गई, लेकिन फ्रांस की सोच और समाज बदल गया। रूढ़िवादी सोच की जगह खुले विचारों ने ले ली और मजदूरों को अच्छी तनख्वाह मिलने लगी।

तियानमेन स्क्वायर आंदोलन (चीन, 1989)

भारत का पड़ोसी चीन भी छात्र आंदोलनों से अछूता नहीं रहा। 1989 में तियानमेन स्क्वायर में बड़ा छात्र आंदोलन हुआ। हालांकि इसे कुचल दिया गया और आज भी इसका जिक्र करने से लोग डरते हैं।
छात्र ज्यादा सोचने की आजादी, बाजार की स्वतंत्रता और लोकतंत्र चाहते थे।

ईरान में शाह के खिलाफ छात्रों की भूमिका

1979 में ईरान क्रांति में यूनिवर्सिटी छात्रों ने शाह को हटाने में बड़ी भूमिका निभाई। उस समय वे धार्मिक सरकार का समर्थन करते थे, लेकिन आज वहीं छात्र धर्मनिरपेक्षता और अमेरिका से संबंध चाहते हैं।
अयातुल्ला का सख्त रवैया छात्रों को फिर आंदोलन के लिए उकसा सकता है।

लैटिन अमेरिका की लंबी लिस्ट

  • लैटिन अमेरिका में भी छात्र आंदोलनों की लिस्ट लंबी है।
  • 2011-13 में चिली के छात्रों ने शिक्षा में असमानता के खिलाफ आवाज उठाई।
  • 1968 में मेक्सिको ओलंपिक से पहले छात्रों का आंदोलन बुरी तरह कुचल दिया गया।
  • 1960 और 70 के दशक में अर्जेंटीना में छात्रों ने सैन्य तानाशाहों का विरोध किया।
  • निकारागुआ में भी छात्रों ने ओर्टेगा सरकार को चुनौती दी।

अमेरिका में वियतनाम युद्ध के खिलाफ छात्र

  • दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र अमेरिका में भी छात्र आंदोलनों ने असर डाला।
  • 1960 और 70 के दशक में छात्रों ने अलगाव और वियतनाम युद्ध का विरोध किया।
  • इससे अमेरिकी समाज की सोच बदल गई।
  • 1980 के दशक में छात्रों ने रंगभेद विरोध आंदोलन में अहम भूमिका निभाई।

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