मथुरा। उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद (Idgah Vivad) को एक बार फिर जनता के बीच लाने की रणनीति तैयार हो रही है। भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस मुद्दे से सीधे तौर पर नहीं जुड़ेंगे, लेकिन संत समाज के माध्यम से इसे धार्मिक-सामाजिक आंदोलन का रूप देने की योजना है। धीरेंद्र शास्त्री (Dhirendra Shastri) की पदयात्रा बना पहला संकेत हाल ही में बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की दिल्ली से वृंदावन तक की विशाल पदयात्रा को इसी कड़ी का पहला कदम माना जा रहा है।
भाजपा-आरएसएस का संतुलित रुख
भाजपा और संघ ने वैचारिक स्तर पर अयोध्या (Ayodhya) के साथ-साथ काशी विश्वनाथ और मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि मुद्दे का हमेशा समर्थन किया है, लेकिन अयोध्या की तरह काशी-मथुरा को कभी पार्टी या संघ का आधिकारिक राजनीतिक-संगठनात्मक एजेंडा नहीं बनाया। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि संघ के एजेंडे में सिर्फ अयोध्या था, मथुरा नहीं, पर स्वयंसेवकों के व्यक्तिगत रूप से जुड़ने पर रोक नहीं है।
संतों के जरिए जनजागरण की तैयारी
सूत्रों का कहना है कि अब मथुरा के मुद्दे को अदालती प्रक्रिया के साथ-साथ संतों के जरिए जनजागरण के रूप में आगे बढ़ाया जाएगा। बागेश्वर बाबा की पदयात्रा ने दिखा दिया है कि ब्रज क्षेत्र में कृष्ण के प्रति भावनाएं कितनी प्रबल हैं। अब इन्हें संगठित कर “कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति” के समर्थन में माहौल बनाया जा सकता है।
यादव समाज पर राजनीतिक नजर
इस रणनीति का एक लाभ यह भी है कि कृष्ण जन्मभूमि मुद्दा यादव समाज को जोड़ सकता है, जो खुद को श्रीकृष्ण का वंशज मानता है। इससे सपा के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लग सकती है।
नितिन गडकरी की अचानक सक्रियता
इसी क्रम में मंगलवार को केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने ब्रज क्षेत्र में सक्रियता दिखाई। वे हेलीकॉप्टर से बरसाना पहुंचे और माताजी गौशाला में गौसेवा की। राधारानी मंदिर में दर्शन और संतों से मुलाकातें इसके बाद उन्होंने राधारानी मंदिर में दर्शन किए और संतों, भाजपा कार्यकर्ताओं व भक्तों से मिले।
ब्रज में नई धार्मिक-सामाजिक समीकरण की झलक
गडकरी इसके बाद गुजरात के प्रसिद्ध कथावाचक पद्मश्री रमेश बाबा की चल रही भागवत कथा में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि ब्रज क्षेत्र भक्ति के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण की प्रेरणा का स्रोत है। उनकी यह यात्रा आने वाले दिनों के नए धार्मिक-सामाजिक समीकरण की ओर संकेत करती दिख रही है।
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