लखनऊ, 25 अगस्त 2025: भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की हालिया रिपोर्ट (Report) ने उत्तर प्रदेश में 2017 से 2022 के बीच अवैध खनन के बड़े पैमाने पर चल रहे ‘खेल’ को उजागर किया है। इस रिपोर्ट ने 11 जिलों में 45 पट्टाधारकों द्वारा 268.91 हेक्टेयर क्षेत्र में अवैध खनन की बात सामने लाई, जिससे राज्य को 408.68 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान हुआ। यह रिपोर्ट न केवल सरकारी तंत्र की निगरानी में कमी को दर्शाती है, बल्कि पर्यावरणीय क्षति और प्रशासनिक लापरवाही के गंभीर सवाल भी उठाती है।
अवैध खनन का दायरा
सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, 45 पट्टाधारकों ने अपने आवंटित क्षेत्रों से बाहर 26.89 लाख घन मीटर खनिजों का अवैध खनन किया। तीन जिलों में 30.40 हेक्टेयर में बिना किसी पट्टे के खनन के मामले सामने आए। चौंकाने वाली बात यह है कि 613 पत्थर तोड़ने वाली इकाइयाँ (स्टोन क्रशर) बिना अनिवार्य भंडारण लाइसेंस के संचालित हो रही थीं, और जिला खनन अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की।
इसके अलावा, मेजा थर्मल पावर प्रोजेक्ट ने बिना खनन पट्टे के 53.88 लाख घन मीटर बलुआ पत्थर और बोल्डर निकाले, जिसके लिए 322.62 करोड़ रुपये की रॉयल्टी में से केवल 81.77 लाख रुपये जमा किए गए।
प्रशासनिक लापरवाही और तकनीकी खामियाँ
रिपोर्ट ने खनन निगरानी तंत्र की विफलता को उजागर किया। केंद्र सरकार के खनन मंत्रालय द्वारा विकसित माइनिंग सर्विलांस सिस्टम का उत्तर प्रदेश के भूतत्व और खनन विभाग ने उपयोग नहीं किया। इसके परिणामस्वरूप, अवैध खनन पर नजर रखने में विफलता रही। ई-ट्रांजिट पास सिस्टम में भी खामियाँ पाई गईं, जहाँ फर्जी वाहन पंजीकरण और अयोग्य वाहनों, जैसे एम्बुलेंस और शव वाहनों, का उपयोग खनिज परिवहन के लिए किया गया। इससे 5.89 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान हुआ।

सीएजी ने यह भी पाया कि खनन पट्टों पर 20.96 करोड़ रुपये की स्टांप ड्यूटी कम वसूली गई, और 54 पट्टाधारकों से खदान बंद करने की वित्तीय गारंटी नहीं ली गई। पर्यावरणीय दृष्टिकोण से, 13.64 लाख पौधों का रोपण और बंद खदानों का पुनर्वास नहीं हुआ, जिससे पर्यावरणीय क्षति का खतरा बढ़ गया।
सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
अवैध खनन का प्रभाव केवल आर्थिक नुकसान तक सीमित नहीं है। यह स्थानीय समुदायों, पर्यावरण, और सरकारी विश्वसनीयता को भी प्रभावित करता है। अवैध खनन से नदियों, जंगलों, और कृषि भूमि को नुकसान पहुँचता है, जिसका असर स्थानीय आजीविका पर पड़ता है। खनन माफिया की सक्रियता और प्रशासन की निष्क्रियता ने स्थानीय लोगों में असंतोष को बढ़ाया है। इसके अलावा, जिला खनिज फाउंडेशन न्यास के गठन में संवैधानिक प्रावधानों का पालन न होने से खनन प्रभावित क्षेत्रों के विकास के लिए धन का दुरुपयोग हुआ।

सरकार और विपक्ष की प्रतिक्रिया
रिपोर्ट के विधानसभा में पेश होने के बाद विपक्ष ने योगी आदित्यनाथ सरकार पर निशाना साधा, इसे प्रशासनिक विफलता का सबूत बताया। दूसरी ओर, सरकार ने दावा किया कि अवैध खनन पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। हालांकि, सीएजी की यह टिप्पणी कि निगरानी तंत्र पूरी तरह विफल रहा, सरकार के दावों पर सवाल उठाती है।
समीक्षात्मक विश्लेषण
यह रिपोर्ट उत्तर प्रदेश में अवैध खनन के गहरे जड़ें जमाए होने और सरकारी तंत्र की उदासीनता को दर्शाती है। खनन माफिया और अधिकारियों के बीच संभावित साठगांठ, तकनीकी उपकरणों का उपयोग न करना, और पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी इस समस्या की जटिलता को दर्शाती है। यह विडंबना है कि एक ओर सरकार डिजिटल इंडिया और पारदर्शिता की बात करती है, वहीं दूसरी ओर ई-ट्रांजिट पास जैसे सिस्टम में फर्जीवाड़ा और एम्बुलेंस जैसे वाहनों का दुरुपयोग हो रहा है।
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