समुद्री शक्ति को बढ़ावा देने की ऐतिहासिक पहल
- भारत (India) सरकार ने समुद्री क्षेत्र को मज़बूत करने और ब्लू इकॉनमी (Blue Economy) को गति देने के लिए एक 1.30 लाख करोड़ रुपये की मेगा योजना का ऐलान किया है।
भारत इस योजना की घोषणा वित्त वर्ष 22 के बजट में की गई थी और जुलाई 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसे मंज़ूरी दी थी. केंद्र और उसकी शाखाओं द्वारा जारी ग्लोबल टेंडर्स में भाग लेने वाली भारतीय शिपिंग कंपनियों को 15 फीसदी तक की सब्सिडी प्रदान करते हुए, वित्त वर्ष 26 तक धनराशि वितरित की जानी थी. कच्चे तेल, लिक्विड पेट्रोलियम गैस, कोयला और फर्टीलाइजर जैसे सरकारी माल के आयात के लिए रियायतें दी गईं।
ये बात किसी से छिपी नहीं है कि भारत दुनिया का बड़ा इंपोर्टर है. साथ ही देश एक्सपोर्टर बनने की राह पर चल निकला है. जिसका रास्ता समंदर से होकर निकलता है. अगर किसी देश को दुनिया का बड़ा एक्सपोर्टर और इंपोर्टर बनना है तो उसे समंदर का राजा बनना ही होगा. इसके लिए देश को चाहिए कई सारे शिप. जिसकी तैयारी भारत की सरकार ने शुरू कर दी है।
अब भारत डॉमेस्टिक शिप्स को बढ़ावा देने के लिए नई योजना पर काम कर रहा है. उसका कारण भी है. मौजूदा योजना अपने टारगेट को पूरा करने में पूरी तरह से फेल रही है, जिसकी वजह से मरीन ट्रेड का मेन प्लेयर बनने की राहत में काफी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
जिसके लिए सरकार की तमाम मिनिस्ट्रीज के बीच एक चर्चा हुई है, जिसमें 200 नए शिप्स की डिमांड सामने आई है. जिनकी कीमत 1.30 लाख करोड़ रुपए बताई जा रही है. ये डिमांड प्रमुख रूप से पेट्रोलिम, स्टील और फर्टीलाइजर्स मिनिस्ट्रीज की ओर से ज्यादा देखने को मिली है. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर का आखिर पूरा प्लान क्या है।
सरकार खरीदेगी 200 जहाज
पोर्ट्स, शिपिंग और जलमार्ग मंत्रालय ने ईटी की रिपोर्ट में जानकारी देते हुए कहा कि शिपिंग मंत्रालय इंडियन फ्लैग्ड जहाजों पर कम इंपोर्ट को संबोधित करने के लिए पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, इस्पात और उर्वरक मंत्रालयों के साथ काम कर रहा है. मंत्रालय ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप लगभग 1.3 लाख करोड़ रुपए के 8.6 मिलियन ग्रॉस टन (GT) के लगभग 200 जहाजों की मांग हुई है, जो पब्लिक सेक्टर की कंपनियों (PSU) के संयुक्त स्वामित्व में होंगे और अगले कुछ वर्षों में भारतीय शिपयार्ड में बनाए जाएंगे.
इंडियन फ्लैग्ड जहाजों मर्चेंटशिप्स की लाइनअप को मजबूत करने के लिए केंद्र का नया प्रयास इसलिए देखने को मिल रहा है क्योंकि ऐसे जहाजों को बढ़ावा देने वाली मौजूदा 1,624 करोड़ की योजना अपने टारगेट से चूक सकती है. मैरिटाइम ट्रेड एक्सपर्ट का कहना है कि आयात में इंडियन फ्लैग्ड जहाजों द्वारा ढोए जाने वाले माल की हिस्सेदारी अभी भी लगभग 8 फीसदी है, जिसमें 2021 में योजना शुरू होने के बाद से कोई बदलाव नहीं हुआ है।
क्यों फ्लॉप हो गई मौजूदा योजना?
मीडिया रिपोर्ट में एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि अब इस योजना की समीक्षा की उम्मीद है, लेकिन अब तक सिर्फ 330 करोड़ रुपए का वितरण हुआ है और इंडियन फ्लैग्ड जहाजों की हिस्सेदारी एकल अंकों में बनी हुई है. इस योजना की घोषणा वित्त वर्ष 22 के बजट में की गई थी और जुलाई 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसे मंज़ूरी दी थी।
केंद्र और उसकी शाखाओं द्वारा जारी ग्लोबल टेंडर्स में भाग लेने वाली भारतीय शिपिंग कंपनियों को 15 फीसदी तक की सब्सिडी प्रदान करते हुए, वित्त वर्ष 26 तक धनराशि वितरित की जानी थी. कच्चे तेल, लिक्विड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी), कोयला और फर्टीलाइजर जैसे सरकारी माल के आयात के लिए रियायतें दी गईं. देश के निर्यात आयात (EXIM) व्यापार में भारतीय जहाजों की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2019 में 1987-88 के 40.7 फीसदी से गिरकर लगभग 7.8 फीसदी हो गई।
आधिकारिक अनुमानों के अनुसार, इससे विदेशी शिपिंग लाइनों को लगभग 70 बिलियन डॉलर का वार्षिक विदेशी मुद्रा व्यय हुआ. भारतीय बंदरगाहों ने 2023-24 में लगभग 1540.34 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) कार्गो का संचालन किया, जो एक वर्ष पहले की तुलना में 7.5 फीसदी अधिक है।
क्या हैं चुनौतियां
आधिकारिक अनुमानों के अनुसार, इंडियन फ्लैग्ड जहाज अनिवार्य रूप से भारतीय नाविकों को काम पर रखते हैं, साथ ही घरेलू कराधान और कॉर्पोरेट कानूनों का भी पालन करते हैं, जिससे ऑपरेशनल कॉस्ट में 20 फीसदी का इजाफा होगा. क्षेत्र पर नज़र रखने वालों का कहना है कि ऑपरेशनल कॉस्ट में का प्रमुख कारण डेट फंड्स की हाई कॉस्ट, लो लोन टेन्योर और भारतीय जहाजों पर काम करने वाले भारतीय नाविकों के वेतन पर कराधान के कारण है।
जहाजों का आयात करने वाली भारतीय कंपनियों पर एक इंटीग्रेट जीएसटी, जीएसटी टैक्स क्रेडिट डिट अवरुद्ध, दो भारतीय बंदरगाहों के बीच सेवाएं प्रदान करने वाले भारतीय जहाजों पर भेदभावपूर्ण जीएसटी भी है; ये सभी समान सेवाएं प्रदान करने वाले विदेशी जहाजों पर लागू नहीं होते हैं. घरेलू उद्योग इन शुल्कों और करों को कम करने के लिए पैरवी कर रहा है।
इंडियन नेशनल शिपऑनर्स एसोसिएशन के सीईओ अनिल देवली से कहा कि भारतीय जहाजों पर शुल्कों और करों के इस बोझ को कम करने के लिए कुछ नहीं हुआ है, जो उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित करता है।