नई दिल्ली । बिहार में एसआईआर (SIR) यानी वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में मंगलवार को सुनवाई हुई। इस मामले में याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश कीं। उन्होंने बताया कि एक छोटे से निर्वाचन क्षेत्र में 12 जीवित लोगों को मृत दिखा दिया गया है और बूथ लेवल ऑफिसर ने काम सही तरीके से नहीं किया। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा कि ये लोग अदालत में क्यों नहीं हैं? इस पर सिब्बल (Sibbal) ने कहा कि वे अदालत में मौजूद हैं और कुछ याचिकाओं में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि पूरी प्रक्रिया सवालों के घेरे में है।
मृतक को जीवित दिखाने की जानकारी चुनाव आयोग को दी गई थी
वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि मृतक को जीवित दिखाने की जानकारी चुनाव आयोग को दी गई थी, पत्नी ने बताया और इसका वीडियो भी है। उन्होंने तर्क दिया कि मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण में नियमों के अनुसार सूची दोबारा तैयार होनी चाहिए, लेकिन मसौदा जारी करने से पहले न तो फॉर्म 4 घर-घर भेजा गया, न दस्तावेज लिए गए। इससे नियम 10 और नियम 12 का उल्लंघन हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि नियम 13 के तहत दी गई आपत्तियों में भी खामियां हैं।
नियम 10 प्रारूप मतदाता सूची तैयार करने के लिए है : सुप्रीम कोर्ट
कपिल सिब्बल ने कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम स्पष्ट कहता है कि मतदाता सूची से किसी का नाम हटाने के लिए सबूत देने का दायित्व उसी व्यक्ति पर है जो आपत्ति उठा रहा है। उसे मृत्यु, पता बदलने, नागरिक न होने आदि का प्रमाण देना होगा। आप मुझसे मेरे दस्तावेज नहीं मांग सकते, क्योंकि सबूत देने की जिम्मेदारी आपत्ति करने वाले की है। सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा कि नियम 10 प्रारूप मतदाता सूची तैयार करने के लिए है।
अगर किसी का नाम शामिल नहीं किया गया है तो वह फॉर्म 6 के तहत आवेदन कर सकता है। वहां आप सही हैं कि अगर आपका नाम गलत तरीके से हटा दिया गया है, तो यह साबित करने की जिम्मेदारी प्राधिकरण की है कि आप नागरिक नहीं हैं, लेकिन क्या चुनाव आयोग ने बीएलओ के माध्यम से वैध फॉर्म 4 जारी किया है? यह एक वैध तर्क का आधार हो सकता है। इस पर सिब्बल ने कहा कि बिना सर्वे प्रक्रिया के ही ड्राफ्ट सूची जारी कर दी गई है।
बीएलओ मनमानी कर रहे हैं
कपिल सिब्बल याचिकाकर्ता पक्ष के वकील गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि अगर मास एक्सक्लूजन होगा तो कोर्ट दखल देगा। ड्राफ्ट रोल से पता चलता है कि 65 लाख लोगों का नाम हटाया गया है, लेकिन आयोग ने इसकी कोई सूची नहीं दी। वहीं कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया कि एसआईआर के दौरान संवैधानिक प्रावधानों की अनदेखी करते हुए बीएलओ और अन्य अधिकारियों ने मनमानी की। उन्होंने कहा कि नए वोटर का नाम जोडऩे के लिए फॉर्म 6 में जन्मतिथि के दस्तावेज के रूप में आधार कार्ड सूची में दूसरे नंबर पर है, लेकिन एसआईआर में चुनाव आयोग आधार स्वीकार नहीं कर रहा है।
इतने बड़े प्रोसेस में कुछ त्रुटियां होंगी
चुनाव आयोग चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने जवाब में कहा कि यह ड्राफ्ट रोल है और जिन लोगों को आपत्ति है, वे आपत्ति दर्ज कर सुधार के लिए आवेदन कर सकते हैं। ड्राफ्ट रोल में कुछ कमियां होना स्वाभाविक है, इसलिए सुधार की प्रक्रिया और अवधि तय की गई है। उन्होंने कहा कि इतने बड़े प्रोसेस में कुछ न कुछ त्रुटियां होंगी ही।
कपिल सिब्बल वकील के लिए कितना चार्ज करते हैं?
कपिल सिब्बल। विवरण: पूर्व कानून मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता, सिब्बल हाई-प्रोफाइल जनहित याचिकाओं और संवैधानिक चुनौतियों के लिए जाने जाते हैं, और प्रति पेशी 7-15 लाख रुपये लेते हैं।
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