हैदराबाद। भाजपा के विरोध को दरकिनार करते हुए प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व क्रिकेटर (Former Cricketer) मोहम्मद अज़हरुद्दीन तेलंगाना सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल हो गए। वे तेलंगाना सरकार के पहले अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले मंत्री (First Minister) है।
राज्यपाल जिष्णुदेव वर्मा ने अज़हरुद्दीन को शपथ दिलाई
पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार आज हैदराबाद जिले से पहले कैबिनेट मंत्री बनने के लिए पूरी तरह से तैयारी कर ली गई थी। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) ने इसकी मंज़ूरी दे दी थी। भाजपा ने मोहम्मद अज़हरुद्दीन को तेलंगाना सरकार मंत्रिमंडल में शामिल करने के विरोध में चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी। इन विरोधों को एक तरफ रखते हुए कांग्रेस पार्टी ने एक रणनीति के अनुसार शपथ ग्रहण को हरी झंडी दे दी थी। शुक्रवार दोपहर 12.15 बजे राजभवन में उन्हें राज्यपाल जिष्णुदेव वर्मा ने शपथ दिलाई। इस दौरान तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी समेत कई मंत्री व वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे।
भाजपा ने मंत्रिमंडल विस्तार रोकने का आग्रह किया था
इस बीच, तेलंगाना भाजपा ने 11 नवंबर को होने वाले जुबली हिल्स उपचुनाव का हवाला देते हुए मुख्य चुनाव अधिकारी (सीईओ ) से मंत्रिमंडल विस्तार रोकने का आग्रह किया है। चुनाव आयोग के अधिकारियों ने कहा कि वे इस मामले को निर्देश के लिए केंद्रीय चुनाव आयोग को भेजेंगे। इसके बावजूद, राज्य सरकार ने अज़हरुद्दीन को मंत्रिमंडल में शामिल करने के अपने फ़ैसले से राज्यपाल को अवगत करा दिया था । मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी और 11 मंत्रियों के शपथ लेने के लगभग 22 महीने बाद, तीन और मंत्रियों के शामिल होने के साथ मंत्रिमंडल की संख्या बढ़कर 15 हो गई। शेष तीन रिक्तियों में से, कांग्रेस आलाकमान ने एक पद अल्पसंख्यक नेता को आवंटित करने का निर्णय लिया और अज़हरुद्दीन के नाम को अंतिम रूप दिया।

अज़हरुद्दीन को गृह और अल्पसंख्यक मामलों का विभाग दिए जाने की संभावना
सूत्रों से संकेत मिलता है कि अज़हरुद्दीन को गृह और अल्पसंख्यक मामलों का विभाग दिए जाने की संभावना है। 62 वर्षीय अज़हरुद्दीन, जो पहले सांसद रह चुके हैं और वर्तमान में टीपीसीसी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। उनकों हाल ही में राज्यपाल कोटे से विधान परिषद (एमएलसी) के लिए मनोनीत किया गया है, जिससे उनके मंत्री पद पर नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ है। गौरतलब है कि 2023 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के प्रमुख मुस्लिम उम्मीदवार हार गए थे, जिससे राज्य के सर्वोच्च कार्यकारी स्तर पर इस समुदाय का प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व नहीं हो पाया।
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