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Sawan Ekadashi : पुत्रदा एकादशी, संतान सुख पाने का श्रेष्ठ व्रत

Surekha Bhosle
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Sawan Ekadashi :  पुत्रदा एकादशी, संतान सुख पाने का श्रेष्ठ व्रत

Sawan Ekadashi : सावन (Sawan) महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी (Ekadashi) तिथि को यह व्रत रखा जाता है। 2025 में यह व्रत सर्वार्थ सिद्धि योग में पड़ रहा है, जिससे इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है

पुत्रदा एकादशी का महत्व

Sawan Ekadashi : यह एकादशी विशेष रूप से उन दंपत्तियों के लिए शुभ मानी जाती है जो संतान प्राप्ति की कामना रखते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा से संतान सुख की प्राप्ति होती है और सभी प्रकार की पारिवारिक बाधाएं दूर होती हैं।

Sawan Putrada Ekadashi Vrat Katha: 5 अगस्त को सावन पुत्रदा एकादशी व्रत है. इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और व्रत कथा सुनते हैं. श्रीहरि की कृपा से संतान सुख मिलता है. आइए जानते हैं सावन पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा के बारे में.

सावन पुत्रदा एकादशी का व्रत

 5 अगस्त दिन मंगलवार को है. सावन पुत्रदा एकादशी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. सर्वार्थ सिद्धि योग 05:50 ए एम से 07:36 ए एम तक है। इस समय में रवि योग भी बनेगा. जो लोग सावन पुत्रदा एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और व्रत कथा सुनते हैं, उनको श्रीहरि की कृपा से संतान सुख मिलता है।

उसे पुत्र की प्राप्ति होती है. पूजा के समय सावन पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा जरूर सुननी चाहिए, इससे व्रत पूरा होता है और इसका महत्व पता चलता है. आइए जानते हैं सावन पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा।

सावन पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

एक दिन युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से निवेदन किया कि आप सावन शुक्ल एकादशी की व्रत विधि और महत्व के बारे में बताएं. तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि सावन शुक्ल एकादशी को सावन पुत्रदा एकादशी कहते हैं।

यह व्रत संतानहीनों को पुत्र सुख प्रदान करने वाला है. जो लोग केवल सावन पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा सुनते हैं, उनको वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है. अब सावन पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा सुनो।काफी समय पहले की बात है. राजा महीजित का महिष्मति नगर पर शासन था. उसने काफी समय तक महिष्मति नगर पर शासन किया।

वह अपनी प्रजा का पूरा ध्यान रखता था, लेकिन वह और उसकी पत्नी काफी दुखी रहते थे क्योंकि वे संतानहीन थे. राजा को पुत्र की चाह थी. वह कहता था कि जिसका बेटा नहीं है, उसके लिए स्वर्ग और पृथ्वी दोनों ही कष्ट देने वाले हैं. उसे कहीं भी सुख की प्राप्ति नहीं होती है।

पुत्र की प्राप्ति के लिए राजा महीजित ने कई उपाय

पुत्र की प्राप्ति के लिए राजा महीजित ने कई उपाय भी किए थे, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली. एक दिन वह काफी दुखी था. उसने राज दरबार में सभा लगाई और लोगों से अपने संतानहीन होने की पीड़ा सुनाई. उसने कहा कि वह हमेशा दान, पुण्य, धर्म के काम करता है।

प्रजा की सेवा करता है, लोगों के सुख और दुख में काम आता है. सभी को सुखी देखना चाहता है. इतना करने के बाद भी जीवन में कष्ट ही है. आज तक उसे कोई पुत्र प्राप्त नहीं हुआ. आप सभी बताएं कि ऐसा क्यों है? उसे आज तक पुत्र क्यों नहीं हुआ?

उस दिन की सभा में राजा महीजित की बातों को सुनकर मंत्री और प्रजा भी दुखी थे. मंत्री और प्रजा के लोग जंगल में गए, वहां ऋषि और मुनियों से मुलाकात करके राजा के दुख को बताया. पुत्र प्राप्ति के लिए उपाय पूछे। ऐसे ही एक दिन वे लोमश ऋषि के पास गए। उन्होंने लोमश ऋषि से भी राजा के दुख का कारण और उपाय जानना चाहा।

पूर्वजन्म में राजा एक निर्धन वैश्य था.

लोमश ऋषि तपस्वी थे. उन्होंने अपने तप के बल पर जान लिया कि पिछले जन्म में राजा ने धन प्राप्ति के लिए कई बुरे कर्म किए. पूर्वजन्म में राजा एक निर्धन वैश्य था. एक दिन वह भूख प्यास से परेशान होकर तलाब किनारे पहुंचा, जहां एक गाय पानी पी रही थी।

तब उसने गाय को वहां से भगा दिया और स्वयं पानी पीने लगा. उस पाप कर्म का फल उसे इस जन्म में भोगना पड़ रहा है. इस वज​ह से उसे पुत्र सुख नहीं मिला।

पुत्रदा एकादशी के पीछे क्या कहानी है?

मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का ‍व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया। कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ।

पुत्रदा एकादशी का क्या महत्व है?

पुत्रदा एकादशी का महत्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। पुत्रदा एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा और व्रत कर के रात्रि जागरण करने का बहुत महत्व है। इस व्रत को करने से जिस फल की प्राप्ति होती है, वह हजारों सालों तक तपस्या करने से भी नहीं मिलता

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