नई दिल्ली, 18 सितंबर 2025: सऊदी अरब और पाकिस्तान (Pakistan) के बीच हाल ही में हुए रक्षा समझौते ने दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में नया मोड़ ला दिया है। इस ‘स्ट्रैटेजिक म्युच्युल डिफेंस एग्रीमेंट’ के तहत, यदि किसी एक देश पर हमला होता है, तो इसे दोनों पर हमला माना जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह भारत के लिए बड़ा खतरा बन सकता है, खासकर पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद के जवाब में सैन्य कार्रवाई के दौरान। क्या सऊदी अब पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के खिलाफ जंग लड़ सकता है? आइए, इसकी गहराई से पड़ताल करें।
समझौते का पूरा खुलासा: NATO जैसा गठबंधन
17 सितंबर 2025 को रियाद के यमामा पैलेस में हस्ताक्षरित इस समझौते का मुख्य प्रावधान है – “एक पर हमला, दोनों पर हमला”। यह NATO की तर्ज पर काम करेगा, जहां दोनों देश किसी भी आक्रमण के खिलाफ संयुक्त रूप से प्रतिरोध करेंगे। उद्देश्य? दोनों देशों की सुरक्षा मजबूत करना, क्षेत्रीय शांति स्थापित करना और रक्षा सहयोग को बढ़ावा देना।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय ने बयान जारी कर कहा, “यह समझौता दोनों देशों की अपनी सुरक्षा बढ़ाने और क्षेत्र व विश्व में सुरक्षा एवं शांति स्थापित करने की साझा प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह रक्षा सहयोग के पहलुओं को विकसित करने और किसी भी आक्रमण के विरुद्ध संयुक्त प्रतिरोध को मजबूत करने का लक्ष्य रखता है।”
समझौते के दौरान पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ को सऊदी में शाही एस्कॉर्ट और F-15 फाइटर जेट्स से स्वागत किया गया। पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर भी रियाद में मौजूद थे। हालांकि, सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान का सीधा उल्लेख नहीं है, लेकिन शाही नेतृत्व की भूमिका स्पष्ट है।
भारत पर असर: ऑपरेशन सिंदूर जैसी कार्रवाई पर सऊदी का दखल?
भारत के लिए यह समझौता चिंता का विषय क्यों? कल्पना कीजिए – यदि पाकिस्तान भारत में पहलगाम जैसे आतंकी हमले को अंजाम देता है और भारत इसका जवाब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसी सैन्य कार्रवाई से देता है। पाकिस्तान इसे अपने ऊपर सीधा हमला मान सकता है। ऐसे में, सऊदी अरब भी समझौते के तहत पाकिस्तान के साथ खड़ा हो सकता है और भारत के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है।
रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी ने चेतावनी दी, “आतंकवाद समर्थकों की धुरी: सऊदी अरब – जिसे कभी ट्रंप ने ‘दुनिया में आतंकवाद का सबसे बड़ा वित्तपोषक’ करार दिया था – और पाकिस्तान, जो दुनिया में आतंकवाद का सबसे कुख्यात प्रायोजक है, ने एक पारस्परिक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसमें कहा गया कि एक पर हमला दोनों पर हमला है।” यह भारत की सुरक्षा रणनीति को जटिल बना सकता है, क्योंकि सऊदी की सैन्य ताकत (विश्व स्तरीय हथियारों से लैस) पाकिस्तान को और मजबूत कर देगी।
आतंकवाद का कनेक्शन: पाकिस्तान की पुरानी आदत, सऊदी की भूमिका?
पाकिस्तान को लंबे समय से आतंकवाद का प्रायोजक माना जाता रहा है। इस समझौते से सऊदी का पाकिस्तान के साथ गठजोड़ भारत के लिए दोहरी चुनौती पैदा करता है – एक तरफ आतंकी फंडिंग, दूसरी तरफ सैन्य समर्थन। विशेषज्ञों का कहना है कि सऊदी का अतीत (ट्रंप के शब्दों में ‘आतंकवाद का वित्तपोषक’) इस गठबंधन को और संदिग्ध बनाता है। यदि पाकिस्तान आतंकी गतिविधियों को जारी रखता है, तो सऊदी का संरक्षण इसे और खतरनाक बना सकता है।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “हम अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ-साथ क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता पर इस घटनाक्रम के प्रभावों का अध्ययन करेंगे। सरकार भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा और सभी क्षेत्रों में व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।” प्रवक्ता रणधीर जायसवाल की यह टिप्पणी सतर्कता बरतने का संकेत देती है।
मध्य पूर्व से दक्षिण एशिया तक तनाव?
यह समझौता सिर्फ द्विपक्षीय नहीं, बल्कि वैश्विक है। सऊदी-पाकिस्तान गठबंधन ईरान जैसे प्रतिद्वंद्वियों को चुनौती दे सकता है, लेकिन भारत के लिए यह सीमा पर नया दबाव पैदा करेगा। अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की नजर भी इस पर है, क्योंकि सऊदी अमेरिकी हथियारों का बड़ा खरीदार है। यदि यह गठबंधन मजबूत हुआ, तो दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन बिगड़ सकता है।
विशेषज्ञों की सलाह: भारत को अपनी कूटनीति तेज करनी होगी – QUAD और अन्य मंचों पर सऊदी से दूरी बनानी होगी, साथ ही सीमा सुरक्षा को और मजबूत करना होगा। कुल मिलाकर, यह समझौता शांति की बजाय तनाव बढ़ाने वाला लगता है। क्या यह ‘आतंकवाद की धुरी’ का नया रूप है? समय ही बताएगा।
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