‘सब बन जाएंगे मशीन, रहने लगेंगे उदास’ – एक डरावनी झलक भविष्य की
बाबा वेंगा, जो अपनी सटीक और रहस्यमय भविष्यवाणियों के लिए जानी जाती हैं, ने इंसानों के भविष्य को लेकर कई बार चेताया है। उनकी यह भविष्यवाणी – “सब बन जाएंगे मशीन, रहने लगेंगे उदास” – एक गंभीर सामाजिक चेतावनी बनकर सामने आती है।
1. टेक्नोलॉजी का अत्यधिक प्रभाव
मशीनों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है
- इंसानों की दैनिक ज़िंदगी में तकनीक इतनी गहराई से घुस चुकी है कि अब बिना स्मार्टफोन या इंटरनेट के जीवन की कल्पना कठिन है।
- AI और रोबोटिक्स मानव श्रम को तेजी से बदल रहे हैं।
इमोशनल डिस्कनेक्ट और अकेलापन
- वर्चुअल संवाद ने वास्तविक संबंधों को कमजोर कर दिया है।
- डिजिटल युग में भावनात्मक जुड़ाव कम होता जा रहा है, जिससे लोग मानसिक रूप से अकेले और उदास महसूस करते हैं।
‘सब बन जाएंगे मशीन, रहने लगेंगे उदास’, यह कोई साइंस फिक्शन फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं, बल्कि विश्वप्रसिद्ध भविष्यवक्ता बाबा वेंगा की एक गंभीर चेतावनी है. अपनी रहस्यमयी भविष्यवाणियों के लिए दुनियाभर में पहचानी जाने वाली बाबा वेंगा ने सालों पहले ही एक ऐसे भविष्य की कल्पना कर ली थी, जो आज के समय में काफी हद तक सच साबित होता दिख रहा है।
उन्होंने सालों पहले ही दुनिया को चेतावनी दे दी थी कि मोबाइल फोन और स्मार्ट डिवाइसेज का ज्यादा इस्तेमाल इंसानों को भावनात्मक रूप से खोखला बना देगा।
मानसिक रूप से हो जाएंगे एक दूसरे से दूर
बाबा वेंगा के अनुसार, मोबाइल फोन का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करना धीरे-धीरे मानव व्यवहार को बदल देगा. लोग शारीरिक रूप से भले साथ हों, पर मानसिक रूप से एक-दूसरे से दूर होते चले जाएंगे. इंसान अपनी असली भावनाओं को अनुभव करने की क्षमता खो देगा. रिश्तों में गहराई की जगह सतहीपन आ जाएगा. डिजिटल दुनिया में हर समय व्यस्त रहने वाले लोग धीरे-धीरे इस हद तक निर्भर हो जाएंगे कि असली दुनिया उन्हें फीकी लगने लगेगी।
मशीन की तरह जीने लगेगा इंसान
उनकी भविष्यवाणी में यह भी था कि इंसान अपनी पहचान को खोते हुए एक ‘मशीन’ की तरह जीने लगेगा. बिना आत्मीयता, बिना संवेदनाओं के. लोग सोशल मीडिया पर ‘लाइक’ और ‘फॉलोअर्स’ के जरिए आत्म-संतुष्टि पाने की कोशिश करेंगे, लेकिन अंदर से खालीपन और अकेलेपन का शिकार होंगे. इमोशनल ब्रेक डाउन, अवसाद और आत्मघात जैसी समस्याएं आम हो जाएंगी।
आज के समय में जब बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक हर कोई मोबाइल की स्क्रीन में डूबा रहता है, बाबा वेंगा की यह बात डराने लगती है. शोध भी दिखाते हैं कि अत्यधिक स्क्रीन टाइम मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है. रिश्ते कमजोर हो रहे हैं, आपसी बातचीत कम हो रही है और अकेलापन बढ़ रहा है।
यह भविष्यवाणी सिर्फ एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक आईना है जो हमें दिखाता है कि अगर हमने समय रहते खुद को नहीं बदला, तो वह दिन दूर नहीं जब हम सच में ‘मशीन’ बन जाएंगे, बिना भावनाओं के, बिना जुड़ाव के और अंत में बिना मानवीयता के।